जेपी आंदोलन: संपूर्ण क्रांति के लिए जनता का संघर्ष

यह आंदोलन केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं था। यह जेपी द्वारा "संपूर्ण क्रांति", एक संपूर्ण क्रांति का आह्वान था।

D K Singh
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जेपी आंदोलन: 1970 के दशक की शुरुआत में, भारत एक दोराहे पर खड़ा था। राजनीतिक भ्रष्टाचार बढ़ रहा था, मुद्रास्फीति गरीबों पर भारी पड़ रही थी, और देश भर के युवा व्यवस्था द्वारा ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। इसी हताशा से भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली जन आंदोलनों में से एक, “जेपी आंदोलन” का उदय हुआ, जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण ने किया, जिन्हें लंबे समय से “जेपी” के नाम से जाना जाता था। यह आंदोलन केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं था। यह जेपी द्वारा “संपूर्ण क्रांति”, एक संपूर्ण क्रांति का आह्वान था।

पृष्ठभूमि: संकटग्रस्त भारत (1973 तक, भारत आर्थिक तंगी और राजनीतिक मोहभंग से जूझ रहा था।)

+ आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही थीं।

+ बेरोजगारी व्याप्त थी।

+ सरकार के हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त था।

बिहार में, 1974 में खराब शासन और अनुचित परीक्षाओं के खिलाफ छात्रों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। ये प्रदर्शन जल्द ही मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन में बदल गए। जब छात्रों ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण से उनका नेतृत्व करने का अनुरोध किया, तो शुरुआती हिचकिचाहट के बाद उन्होंने स्वीकार कर लिया।

जेपी आंदोलन का दृष्टिकोण: संपूर्ण क्रांति

जेपी केवल सरकार में परिवर्तन नहीं चाहते थे; वे भारतीय समाज का मूल रूप से परिवर्तन चाहते थे।

संपूर्ण क्रांति के उनके विचार में सात प्रमुख क्षेत्र शामिल थे:

1. राजनीतिक – भ्रष्टाचार और अधिनायकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना।

2. सामाजिक – जातिगत भेदभाव और असमानता से लड़ना।

3. आर्थिक – धन का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना।

4. सांस्कृतिक – नैतिक और आचार-विचार के मूल्यों को पुनर्जीवित करना।

5. शैक्षिक – लोगों की सेवा के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार करना।

6. आध्यात्मिक – नेतृत्व में ईमानदारी और विनम्रता को प्रेरित करना।

7. नैतिक – सरकार और शासितों के बीच विश्वास का पुनर्निर्माण करना।

उन्होंने नागरिकों से लोकतंत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए अहिंसक विरोध, सविनय अवज्ञा और जमीनी स्तर पर संगठन के माध्यम से शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ कार्रवाई करने का आग्रह किया।

जेपी आंदोलन का विकास

1974 के मध्य तक, जेपी आंदोलन बिहार से कहीं आगे तक फैल चुका था। गुजरात, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों के छात्र, मज़दूर और आम नागरिक इसमें शामिल हो गए। जेपी ने भ्रष्ट अधिकारियों के इस्तीफ़े और नए चुनावों की माँग करते हुए विशाल रैलियों को संबोधित किया।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस आंदोलन को एक सीधा ख़तरा माना। तनाव बढ़ता गया। हड़तालें, विरोध प्रदर्शन और झड़पें आम हो गईं। 1 अप्रैल, 1974 को इंदिरा गांधी ने बिहार आंदोलन की निर्वाचित सरकार को हटाने की मांग पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने पूछा, “जो लोग लगातार अमीरों से अनुग्रह प्राप्त करते रहते हैं, वे भ्रष्टाचार की बात करने का साहस कैसे कर सकते हैं?”

8 अप्रैल को पटना में 10,000 छात्रों का मौन जुलूस निकाला गया। 12 अप्रैल को गया में “सरकार को पंगु बनाओ” विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में प्रदर्शनकारी मारे गए। छात्रों ने बिहार विधानसभा भंग करने की भी मांग की। लोगों ने एनएच 31 जैसी सड़कों को अवरुद्ध करके और स्वयं कर्फ्यू लगाकर प्रदर्शन किया।

जेपी दिल्ली गए और 13 और 14 अप्रैल को आयोजित नागरिक अधिकारों की मांग करने वाले संगठन “सिटीजन्स फॉर डेमोक्रेसी” के सम्मेलन में भाग लिया। मई 1974 के दौरान, विभिन्न छात्र और जन संगठन विधानसभा भंग करने और सरकार के इस्तीफे की मांग करते रहे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

आपातकाल: सरकार का दमन

25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए ख़तरे का हवाला देते हुए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की। दरअसल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें चुनावी कदाचार का दोषी पाए जाने के बाद, यह असहमति को दबाने और अपनी सत्ता बनाए रखने की एक चाल थी।

जयप्रकाश नारायण और अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे विपक्षी नेताओं सहित हज़ारों कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया। प्रेस की आज़ादी पर अंकुश लगाया गया। नागरिक स्वतंत्रताएँ निलंबित कर दी गईं। भारत का लोकतंत्र 21 महीनों के लिए अंधकार में डूब गया। लेकिन जेल से भी, जेपी के नैतिक साहस और एकता के आह्वान ने प्रतिरोध की भावना को जीवित रखा।

आंदोलन का परिणाम: लोकतंत्र की बहाली

जब 1977 में आखिरकार चुनाव हुए, तो जनता ने अपनी बात ज़ोरदार और स्पष्ट रूप से रखी। इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी के नेतृत्व में एकजुट विपक्षी दल सत्ता में आए – जो भारत के इतिहास में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी।

हालाँकि जनता सरकार ज़्यादा दिन नहीं चली, लेकिन जेपी आंदोलन की विरासत कायम रही। इसने दिखाया कि जनता सबसे शक्तिशाली नेताओं को भी जवाबदेह ठहरा सकती है।

जेपी आंदोलन आज भी क्यों मायने रखता है: जेपी आंदोलन इतिहास का एक अध्याय मात्र नहीं था – यह लोकतांत्रिक सतर्कता का एक सबक था। इसने साबित किया कि जब नागरिक शांतिपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण ढंग से एकजुट होते हैं, तो वे किसी भी अन्यायपूर्ण व्यवस्था की नींव हिला सकते हैं। जेपी का संदेश आज भी अमर है:

“जनता राष्ट्र की स्वामी है। सरकारें उसकी सेवक हैं।”

आज की दुनिया में – जहाँ ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल अभी भी सार्वजनिक चर्चा में छाए हुए हैं – जेपी आंदोलन की भावना उन लोगों को प्रेरित करती रहती है जो जन-शक्ति से प्रेरित परिवर्तन में विश्वास करते हैं।

अंतिम विचार :जेपी आंदोलन एक विरोध प्रदर्शन से कहीं बढ़कर था; यह अंतरात्मा का जागरण था। जयप्रकाश नारायण भले ही पद पर न रहे हों, लेकिन उन्होंने भारत को इससे कहीं अधिक महान चीज़ दी – यह याद दिलाना कि असली सत्ता राजनेताओं की नहीं, बल्कि जनता की होती है।

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D K Singh Editor In Chief at CMI Times News. Educationist, Education Strategist and Career Advisor.
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