दिल्ली की एक अदालत ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) के खिलाफ कथित मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित करने से पत्रकारों को रोकने वाले पुराने आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि यह आदेश “सही नहीं है” क्योंकि प्रतिवादियों को सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। यह आदेश पत्रकारों रवि नायर, अभिर दासगुप्ता, अयस्कान्त दास और आयुष जोशी द्वारा दायर अपील पर आया। जिला जज आशीष अग्रवाल ने कहा कि ऐसा आदेश याचिकाकर्ताओं को उचित प्रक्रिया के बिना मध्यस्थों से सामग्री हटाने के लिए दबाव डालने की अनुचित छूट देगा।
इससे पहले, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने 6 सितंबर के निर्देश पर चिंता जताई थी, जिसके तहत पत्रकारों और कंटेंट क्रिएटर्स को यूट्यूब और सरकारी अधिकारियों से सामग्री हटाने के नोटिस मिले थे। वहीं, पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता द्वारा इसी आदेश के खिलाफ दायर अलग अपील अभी भी लंबित है।
न्यायाधीश ने कहा कि ये लेख लंबे समय से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थे, इसलिए सिविल जज को लेख हटाने का आदेश देने से पहले पत्रकारों को अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए था। न्यायाधीश ने आगे कहा, “हालांकि वाद दायर (अडानी एंटरप्राइजेज ) करने वाले ने कार्यवाही के दौरान प्रकाशित लेखों और पोस्ट पर आपत्ति जताई, लेकिन अदालत ने विवादित आदेश पारित करने से पहले प्रतिवादियों को अपनी बात रखने का मौका देना उचित नहीं समझा।
मेरी राय में, सिविल जज को यह मौका देना चाहिए था, क्योंकि इस आदेश से, प्रभावी रूप से, लेखों को मानहानिकारक घोषित कर दिया गया और उन्हें हटाने का आदेश दिया गया।” बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी कोर्ट के जिला जज सुनील चौधरी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।



